आमेर मीनाओ का इतिहास
आमेर का किला और उसके आसपास के क्षेत्र, अब कच्छवाहा शासकों के अधीन हैं, लेकिन
मीणा शासकों की वीरता और संघर्ष की गाथाएं आज भी यहां की दीवारों में गूंजती हैं।
नाहरगढ़ की पहाड़ियों से लेकर जलमहल तक, आमेर का हर कोना
मीणा शासकों के इतिहास और उनके योगदान की गवाही देता है। हालांकि, आमेर पर कच्छवाहा शासकों का अधिकार हो चुका था, लेकिन
मीणा शासकों की धरोहर इस भूमि पर हमेशा जीवित रहेगी।
राजस्थान का इतिहास मीनाओ की वीरता, बलिदान, और संस्कृति से समृद्ध है। इसका हर किला और हर कोना एक अद्वितीय कहानी कहता है। आमेर का किला, जो अब कच्छवाहा वंश का प्रतीक बन चुका है, कभी
मीणा शासकों की शक्ति का केंद्र हुआ करता था। यह वह दौर था जब आमेर की धरती पर मीणाओं का राज्य था और वे यहां के सच्चे शासक थे।
भानो राव, सुसावत मीणा गोत्र के एक महान राजा, जिन्होंने अपने शासनकाल में आमेर को समृद्धि की ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
सुसावत मीणा गोत्र के शासक भानो राव का आमेर पर शासन, लगभग 12वीं सदी में था। आमेर राज्य का महत्व उसकी सामरिक स्थिति के कारण भी था।
नाहरगढ़ की पहाड़ियों से लेकर जलमहल तक फैला हुआ यह क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था। पहाड़ियों की ऊंचाई और कठिन भूगोल ने इसे एक प्राकृतिक किला बना दिया था, जहां से दुश्मनों पर नजर रखना और राज्य की रक्षा करना आसान था। भानो राव ने इस सामरिक स्थिति का पूरा लाभ उठाया और अपने राज्य को आंतरिक और बाह्य खतरों से सुरक्षित रखा।
लेकिन इतिहास का यह अध्याय धोखे और छल का भी गवाह बना, जब भानो राव की हत्या कर आमेर पर कच्छवाहा शासक मेकुलराव ने कब्ज़ा कर लिया।
मेकुलराव कच्छवाहा कांकिल पुत्र (कांकिल दुल्हराया पुत्र), मांची राज्य का शासक, आमेर की समृद्धि और शक्ति से ईर्ष्या करता था। उसने पहले
भानो राव से मित्रता का हाथ बढ़ाया, ताकि आमेर राज्य में अपनी पैठ बना सके। भानो राव ने भी इसे सच्चा मित्र समझकर उसे आमेर आमंत्रित किया। लेकिन मेकुलराव के मन में कुछ और ही योजना चल रही थी और उसने भयानक षड्यंत्र रचा।
मेकुलराव ने अंबिकेश्वर जी के दर्शन करने का बहाना बनाकर अपनी डोलियों और पालकियों में सशस्त्र योद्धाओं को छिपा लिया और आमेर पहुंचा। भानो राव, अपने मित्र का स्वागत करने के लिए, बिना किसी शस्त्र के कुछ मीणा सरदारों के साथ वहां पहुंचे। मेकुलराव ने अवसर देखते ही अपने छिपे हुए योद्धाओं को हमला करने का आदेश दे दिया और खुद भी भानो राव पर तलवार से वार किया। इस विश्वासघाती हमले में भानो राव की निर्मम हत्या कर दी गई। उनके साथ मौजूद निःशस्त्र मीणा सरदार भी राजपूत योद्धाओं के हाथों मारे गए। इस कपटपूर्ण हमले में आमेर के महल में रक्त की नदियां बहने लगीं और स्त्रियों और बच्चों के करुण क्रंदन से आमेर नगरी कांप उठी।
भानो राव की हत्या के बाद मेकुलराव ने आमेर पर अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार, मीणा राजवंश का आमेर पर शासन समाप्त हो गया और कच्छवाहाओं का शासनकाल आरंभ हुआ।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कांकिल देव, जो कि दुलहराय के पुत्र थे, ने आमेर पर विजय प्राप्त की थी, जबकि अन्य यह मानते हैं कि यह मेकुलराव की कपटपूर्ण योजना थी जिसने आमेर पर कब्ज़ा किया।
मेकुलराव के विश्वासघात के बाद भी, मीणाओं ने हार नहीं मानी। उन्होंने कच्छवाहाओं के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। खासकर
हूण देव के शासनकाल में, मीणाओं और कच्छवाहा शासकों के बीच संघर्ष और भी उग्र हो गया। हूण देव ने अपने शासनकाल में
मीणाओं के खिलाफ कई अभियान चलाए। उसने मांडेरिया गोत्रीय मीणा राजा को परास्त कर भाण्डारेज पर अधिकार कर लिया और धोखे से मीणा सरदारों को मारने के लिए कुटिल चालें चलीं।
इस संघर्ष में मीणा सरदारों ने संगठित होकर हूण देव की सेना से युद्ध किया। इस युद्ध में दोनों पक्षों की भारी जन हानि हुई, लेकिन मीणाओं की वीरता और साहस ने उन्हें कभी हार मानने नहीं दी। अंततः, इस भीषण युद्ध में हूण देव मारा गया, लेकिन मीणाओं को आमेर का राज्य पुनः प्राप्त नहीं हो सका। कच्छवाहा शासकों की शक्ति और उनकी सामरिक स्थिति ने उन्हें आमेर पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद की।
हूण देव की मृत्यु के बाद, उसके पुत्र जानड़देव ने आमेर की गद्दी संभाली। हालांकि, वह भी मीणाओं के प्रति कठोर नीति अपनाता रहा, जिसके कारण मीणा सरदारों ने उनके खिलाफ अहिंसात्मक सत्याग्रह किया। मीणाओं ने अपने पूर्व प्रचलित विशेषाधिकारों की मांग की, जिन्हें जानड़देव ने अस्वीकार कर दिया। इससे दोनों पक्षों के बीच संघर्ष और बढ़ गया तो उन्होंने चंबल नदी के किनारे के पहाड़ों और वनों में अपने निवास स्थापित कर लिए।
हालांकि, इसके बाद राव पजोनी का शासनकाल आया, जिसने मीणाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए। राव पजोनी ने मीणाओं के पुराने विशेषाधिकारों को फिर से बहाल किया। इसके तहत, मीणाओं को उनके प्राचीन राजचिन्ह, जैसे नक्कारा, पताका, छड़ी पालकी, छत्र, चामर आदि लौटा दिए गए। इसके अलावा, सेना में मीणाओं को प्राथमिकता दी गई, और राज्य की राजगद्दी पर किसी को बैठाने के लिए मीणा सरदारों की सहमति अनिवार्य कर दी गई। इस शांति काल में मीणाओं को उनकी खोई हुई गरिमा और पहचान वापस मिली।
कछवाहा वंश ने छल-कपट से मीणाओं के कई राजवंशों को खत्म किया, लेकिन पूरी तरह नियंत्रण नहीं कर सके। इतिहासकारों के अनुसार, कछवाहों ने मीणाओं से समझौते द्वारा सत्ता प्राप्त की। मीणाओं ने न केवल नक्कारे और राजचिह्न अपने पास रखे, बल्कि महलों, किलों और महाराज की सुरक्षा का जिम्मा भी संभाला। 16 पीढ़ियों तक कछवाहा शासक मीणाओं के सम्मान के साथ शासन करते रहे। पर शायद कहा जाए न सांप को कितना ही दूध पी पीला लो वो डसता जरूर है अंततः, मुगल सम्राट अकबर की मदद से कछवाहा वंश ने नहान के राज्य को खत्म कर अपना राज्य स्थिर किया।
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