मीणा इतिहास

बावन कोट छप्पन दरवाजा – मीणा मर्द नहाण का राजा।"

          बावन कोट छप्पन दरवाजा, मीणा मर्द                         नहाण का राजा। "

बेटी चढ़ी बलि – चूली बावड़ी


                          चूली बावड़ी

चूली बावड़ी कोई साधारण बावड़ी नहीं है, यह एक रहस्यमयी और अद्भुत स्थल है, यहा आज भी गहन आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस की जा सकती है। घने जंगलों के बीच स्थित इस प्राचीन बावड़ी के चारों ओर अनेक साधु-संतों ने वर्षों तपस्या की है, और उनकी तपस्या की आंच आज भी यहां महसूस होती है।

            बावड़ी के आसपास कई साधुओं की समाधियां हैं, जो इस स्थान को और भी पवित्र और शक्तिशाली बनाती हैं। लोगों का मानना है कि इन साधुओं की आत्माएं आज भी यहां उपस्थित हैं और इस पवित्र स्थल की रक्षा करती हैं। इसी परिसर में चूली देवी की प्रतिमा भी स्थापित की गई है, जो गांववालों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है। ग्रामीण चूली देवी को खेतों और परिवारों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजते हैं, और उनका बलिदान हमेशा गांव की समृद्धि का प्रतीक बना हुआ है।

               कहानी तब की है जब सरजोली में पानी का संकट गहराया हुआ था। गांव के लोग निराश थे, क्योंकि आसपास कहीं भी पानी का स्रोत नहीं था। गांव के मुखिया,  जो मीणा समाज के थे वे अपनी दूरदर्शिता और साहस के लिए प्रसिद्ध थे, ने इस समस्या को हल करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने गांव के पास एक पहाड़ी स्थान चुना और वहां एक भव्य बावड़ी बनवाने का निर्णय लिया। लेकिन उस समय की मान्यता थी कि किसी भी बड़े निर्माण के स्थायीत्व और सुरक्षा के लिए किसी प्रिय वस्तु की बलि देना आवश्यक होता है। बिना इस बलि के निर्माण लंबे समय तक नहीं टिकते थे।
             
                 बावड़ी का निर्माण शुरू हुआ, और पूरा गांव इसे लेकर उत्साहित था। लेकिन जैसे ही बावड़ी बनकर तैयार हुई, उसमें पानी नहीं आया। गांववालों की उम्मीदें टूट गईं। उसी समय, गांव के एक विद्वान साधु ने बताया कि इस बावड़ी को पानी तभी मिलेगा, जब मुखिया अपनी सबसे प्रिय वस्तु की बलि देगा। यह सुनते ही मुखिया के चेहरे पर उदासी छा गई, क्योंकि उसकी सबसे प्रिय वस्तु उसकी बेटी, चूली, थी।

चूली सिर्फ मुखिया की बेटी नहीं, बल्कि पूरे गांव की लाड़ली थी। उसकी सरलता, प्रेम और त्याग की भावना ने उसे सबके दिलों में खास स्थान दिलाया था। जब चूली को इस भविष्यवाणी के बारे में पता चला, तो उसने बिना किसी झिझक के अपने पिता से कहा कि वह बलिदान के लिए तैयार है। चूली ने यह निर्णय गांव की भलाई के लिए लिया, ताकि उसके गांववाले पानी की कमी से न जूझें।

           उसके बलिदान के बाद, एक चमत्कार हुआ। बावड़ी में धीरे-धीरे पानी भरने लगा, और आज तक इस बावड़ी में पानी कभी नहीं सूखा, जबकि सरजोली और उसके आसपास के क्षेत्र पानी की कमी से पीड़ित रहते हैं। गांववालों ने इस बावड़ी का नाम चूली के नाम पर रखा, ताकि उसका बलिदान हमेशा याद रखा जा सके।
              यह स्थान केवल एक बावड़ी नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता, भक्ति और त्याग की भूमि है, जहां समय जैसे ठहर गया हो और साधुओं की तपस्या की दिव्य ऊर्जा अब भी बह रही हो।

राजस्थान  पहाड़ों के बीच बसा सरजोली गांव अपने इतिहास और रहस्यमयी कहानियों के लिए जाना जाता है। यहां एक प्राचीन बावड़ी है, जिसे "चूली बावड़ी" के नाम से जाना जाता है। यह बावड़ी न सिर्फ गांववालों के लिए पानी का एकमात्र स्रोत है, बल्कि इसके पीछे छिपी कहानी बलिदान, प्रेम और त्याग की अद्भुत 
मिसाल है।
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                      मीनेष ज्ञान–सागर 

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