मीनाओं का मारवाड़
मारवाड़ से पर्याय है मेरवाड से और मेर, मय और
मीणा एक ही जाति के पर्यायवाची शब्द माने जाते हैं। इस समुदाय के लोग मुख्यतः पहाड़ी और जंगल क्षेत्रों में रहते थे, जिनका नामकरण
मेरवाड़ा हुआ। इनका ऐतिहासिक संघर्ष और साहसिकता आज भी लोकगीतों और कहानियों में बखान की जाती है।
मेरवाड़ा (
मारवाड़) का ऐतिहासिक संदर्भराजस्थान का मेर
मीणा समुदाय, अपनी अदम्य साहसिकता और संघर्ष की गाथाओं के लिए जाना जाता है। यह मीणा जाति न केवल अपनी पहचान बनाए रखने के लिए लड़ाई करती रही है, बल्कि अपने अधिकारों की रक्षा भी करती रही है।
19वीं सदी के प्रारंभ में, अजमेर के अंग्रेज सुपरिटेंडेंट मिस्टर वाल्टर ने मेर
मीणा समुदाय के मुखियाओं के साथ एक समझौता किया। इस समझौते में यह शर्त रखी गई कि मीणा जाति को इलाके में कर न वसूलने और लूटपाट न करने का आश्वासन देना होगा। बदले में, उन्हें रोजगार का वादा किया गया। लेकिन, अंग्रेजों ने इस शर्त का पालन नहीं किया, जिससे मेर
मीणा समुदाय के लोगों में गहरी नाराजगी उत्पन्न हुई।
सन् 1819 में, अंग्रेजों ने नसीराबाद की छावनी से एक बड़ी फौज भेजकर मेर मीणाओं पर हमला किया। इस हमले में कई सैनिक हताहत हुए, जबकि कई मीणा सरदार घायल होकर जंगलों में भाग गए। लेकिन, नवंबर 1821 में, मेर मीणाओं ने इस विश्वासघात को सहन नहीं किया। उन्होंने अपने लोगों को एकजुट कर अंग्रेजी थानों पर हमले की योजना बनाई और अदम्य साहस के साथ लूटपाट की। इस संघर्ष में उन्होंने केवल अंग्रेजों को निशाना बनाया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उनका मुख्य उद्देश्य केवल अपने अधिकारों की रक्षा करना था।
अंग्रेजो के थानों को लूटने के बाद, ब्रिटिश अधिकारी नाराज हो गए और मेर मीणा गाँवों में सघन सर्च अभियान चलाया। तीन महीने तक उन्हें परेशान किया गया, लेकिन मेर मीणा समुदाय जंगलों में अपने ठिकानों को सुरक्षित रखते हुए अपनी पहचान बनाए रहे। अंततः, जनवरी 1822 में, ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने अभियान को स्थगित कर दिया, यह दर्शाता है कि मीणा जाति का साहस उन्हें दबाने में असफल रहा।
तत्कालीन कैप्टन टॉड ने महाराणा के नाम पर मेरवाड़ के मेवाड़ अधिकृत भाग का शासन संभाला और टाटगढ़ का किला बनाकर वहाँ 600 बंदूकधारियों की एक बड़ी फौज का गठन किया तथा आसपास के मेर मीणाओं को दबाने का भरसक प्रयास किया जाने लगा। उसमें उदयपुर के महाराणा ने सन् 1823 में मेरवाड़ा के 76 गाँव 10 वर्ष के लिए बंदोबस्त किए जाने के लिए अंग्रेज सरकार को शर्त के मुताबिक सौंप दिए और उसके खर्च के लिए 15000 पर वार्षिक व्यय उनसे लिया जाने लगा।
सन् 1824 में मिस्टर वाइल्डर ने ऐसा ही समझौता
जोधपुर राज्य से किया और 15000 रूपये वार्षिक खर्चा उनसे लिया। इन शर्तनामों की अवधियाँ बढ़ाई जाती रही और मेरवाड़ा को अंग्रेजों में अपने आधिपत्य में ही बनाए रखा। कर्नल हाल नामक अंग्रेज अधिकारी ने मेरों के दीवानी और फौजदारी मामलों का निपटारा उन्हीं के पंचों द्वारा हल करवाने की नीति अपनाई तथा उसके बाद कर्नल डिक्शन ने भी सन्
1842 तक मेरवाड़ा के मेरो को शांति प्रिय बनाने के लिए जी तोड़ प्रयत्न किए।मेरवाड़ा के मेर इस प्रकार खेती आदि धंधों तथा नौकरी में लगा दिए जाने के कारण पहाड़ियों और जंगलों में बने अपने मेवासे छोड़कर खुले में बस गए ! मीणा जाति, मेर और मय का एक ही वंश से संबंध दर्शाता है,
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