100000 मीनाओ का कत्लेआम
कहा जाए तो मीणा समाज ~ आप~मैं अपने असली इतिहास से अवगत ही नहीं हारना जितना तो दूसरी बात है हमे तो अपनों के बलिदान का ही नहीं पता सल्तनत काल (1206-1526) के दौरान, भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों का शासन था, इन शासकों में से एक प्रमुख नाम
गयासुद्दीन बलबन का है। बलबन, जो
गुलाम वंश का एक शक्तिशाली सुल्तान था, ने न केवल
दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा को मजबूत किया, बल्कि अपने शासनकाल के दौरान कई आदिवासी और हिंदू जातियों का दमन भी किया। इसमें प्रमुखता से
मीणा समाज का नाम आता है, जो राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में निवास करती थी।
बलबन की शासन नीति को "
लहू और लौह" के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ था कि वह अपने शासन को सख्ती से लागू करने और किसी भी प्रकार के विद्रोह को बेरहमी से कुचलने के लिए कड़ा रुख अपनाता था। उसने अपनी सेना को संगठित किया और विद्रोही तत्वों, विशेषकर राजस्थान और मेवात के क्षेत्रों में रहने वाले
मीणा समाज के खिलाफ कठोर कार्रवाई की। बलबन ने इन क्षेत्रों में मीणा समाज को अपने शासन के लिए खतरा माना, और इसीलिए उसने उन पर कड़ा आक्रमण किया।
बलबन के शासनकाल में मीणा समाज के वीर योद्धा ने सल्तनत के खिलाफ कड़ा प्रतिरोध किया ।
बलबन ने पहली बार 1249 ईस्वी में
मीणा समाज के खिलाफ एक बड़ा आक्रमण किया। उसका उद्देश्य मीणा समाज का राजनीतिक प्रभुत्व समाप्त करना और उनके गांवों को नष्ट करना था। इस
आक्रमण में बलबन ने अपने सैनिकों को मीणा गांवों को लूटने और जलाने का आदेश दिया।बलबन की सेना ने राजस्थान और मीनाओ के क्षेत्रों में मीणों के गांवों पर हमला किया, उन्हें लूटा और उनके किलों को नष्ट कर दिया। इस आक्रमण का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह था कि मीणा समाज को मजबूरन पहाड़ियों और जंगलों में शरण लेनी पड़ी। लेकिन अपना समाज भी कहा हार मानने वाला समय समय पर पलट वार करता रहा।
1266 ईस्वी में
बलबन ने
फिर से मीणा समाज के खिलाफ एक बड़ा आक्रमण किया। इस बार उसने अपने सुल्तान बनने के बाद अपनी सेना को पुनः संगठित किया और मीणों को पूरी तरह से खत्म करने का संकल्प लिया।
बलबन के इस आक्रमण में, मीणा समाज का भारी संहार हुआ। इतिहासकारों के अनुसार, लगभग एक लाख मीणों को मौत के घाट उतार दिया गया। बलबन ने मीणों के गांवों और किलों को जलाने और लूटने के आदेश दिए। इस क्रूर आक्रमण के दौरान बलबन ने न केवल मीणों के जीवन और संपत्ति को नष्ट किया, बल्कि मीणा समाज की सभ्यता और संस्कृति को भी बुरी तरह प्रभावित किया।
बलबन के दमन के बाद,
मीणा समाज ने पहाड़ों और जंगलों में शरण लेकर गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया। वे समय-समय पर सल्तनत के ठिकानों पर हमला करते रहे और अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई जारी रखी।किसी भी प्रकार से क्रूरता और दमन भी मीणा समाज की सांस्कृतिक धरोहर और उनकी साहसिक लड़ाई को समाप्त नहीं कर सकता।
मीणा समाज का योगदान इस संघर्ष के माध्यम से सल्तनत काल में स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले अन्य समुदायों के लिए प्रेरणा बना।
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