पचवार –पांच पवित्र गोत्रों का संगम
......पचवारा राजस्थान के
मीणा समुदाय के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर का प्रमुख केंद्र रहा है। इसका प्राचीन गौरव आज भी यहाँ की मिट्टी में बसा हुआ है, जो मीणों की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का साक्षी है।""
पचवारा" राजस्थान के
मीणों के प्राचीन निवास स्थान का प्रतीक है, जो इतिहास और संस्कृति से समृद्ध है।जो राजस्थान के प्राचीन समय में उनकी एक महत्वपूर्ण बस्ती थी।
कर्नल जेम्स टॉड ने इसे
मीणों की पाँच प्रमुख और पवित्र जातियों द्वारा बसाई गई बस्ती के रूप में वर्णित किया। यह क्षेत्र
कालीखोह पर्वत श्रृंखला से लेकर अजमेर से यमुना नदी तक फैला हुआ था, जिसे आज पचवारा के नाम से जाना जाता है
मीणों के इस भू-भाग में प्रमुख शहर जी खोहगंग और माँच थे। मीन पुराण में मुनिमगन सागर ने लिखा है कि इस क्षेत्र में कभी भड़ागोत्रीय शाखा का शासन था। इसीलिए इसे "पंचभड़ा" कहा गया, जो समय के साथ "पचवारा" बन गया। एक जागा के छंद में बताया गया है कि पाँच प्रमुख गोत्र या व्यक्ति इस क्षेत्र में निवास करते थे, जिनमें "मुरकल्या बारवाल" गोत्र प्रमुख था।
यह पचवारा क्षेत्र वर्तमान में जयपुर जिले के लालसोट तहसील के पर्वतीय क्षेत्र के पश्चिम और उत्तर की ओर फैला हुआ है। इस क्षेत्र की सीमा पूर्व में बाँसखो से, पश्चिम में अरावली पर्वत से पपलाद देवी तक, दक्षिण में मोरेल नदी, और उत्तर में सेंथल तक मानी जाती है। संवत 1300 के आस-पास इस क्षेत्र की उन्नति चरम पर थी और यहाँ के मीणों का अन्य शाखाओं की तुलना में अधिक सम्मान था।
विन्सेट स्मिथ ने "केम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया" में इस क्षेत्र के सामाजिक महत्व को समझाया है। उनके अनुसार, प्राचीन शासन प्रणाली में पाँच सभाओं का महत्व था, जो समाज के पाँच विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करती थीं। इस प्रकार, "पचवारा" का नामकरण संभवतः इन पाँच सभाओं या सामाजिक गठबंधनों पर आधारित हो सकता है, जो इस क्षेत्र की एकता और प्रतिनिधित्व को दर्शाते थे।
पचवारा के पाँच मेवासे
1. हड़पोल डोबवाल गाँव डोब (त. लालसोट)
2. मुरकल्योजी छारैडा त. दौसा
3. करणो जी बैफलावत (उपनाम खारोराव) गांव पापड़दा त.दौसा
4. कागोजी छाडवाल गाँव बैजवाड़ी त. दौसा
5. लाहड़ोजी गोठवाल। लाहडी वाला
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें