मीणों का यह बड़ा नरसंहार एक ऐसा घाव था जो कभी भरा नहीं जा सका। मीणा समाज, जो पहले सत्ता में था, अब कमजोर और बिखरा हुआ हो गया। प्रतिशोध और क्रोध से भरा मीणा समाज धीरे-धीरे अपराध की ओर बढ़ने लगा।
बूंदी का इतिहास एक तरफ जहां उषरा मीणों की वीरता और गौरव की कहानी कहता है, वहीं दूसरी ओर यह धोखे और छल की भी एक अद्वितीय कहानी है। यह घटना हमें बताती है कि कैसे सत्ता के लिए छल और षड्यंत्र का सहारा लिया गया और एक पूरा समाज इतिहास के पन्नों में खो गया
हाड़ौती क्षेत्र के इतिहासकार और प्रसिद्ध ग्रंथ जैसे नैणसी की ख्यात और वंश भास्कर यह प्रमाणित करते हैं कि बूंदी का प्रारंभिक शासन उषरा मीणों के हाथ में था। जैतसागर तालाब का निर्माण मीणा शासक महाराजा बूंदा मीना जिसके नाम पे बूंदी नाम पड़ा उन्हीं के पोते जैता मीना ने करवाया था । उस समय मीणों का इस क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण था, और वे एक शक्तिशाली जनजाति मानी जाती थी।
13वीं सदी के अंत में राजपूतों ने बूंदी पर अपना अधिकार जमाने के लिए एक घातक योजना बनाई। सीधा युद्ध करने के बजाय, उन्होंने विवाह का बहाना बना मीणा सरदारों को धोखे से मारने की योजना बनाई। मीणा सरदारों को विवाह के लिए बुलाया गया, और वहाँ उन्हें शराब पिलाई गई। जैसे ही मीणों ने अपनी सुध-बुध खो दी, राजपूतों ने बारूद और तलवारों से उन पर हमला कर दिया।
इस भीषण षड्यंत्र के परिणामस्वरूप, माना जाता है कि पाँच लाख मीणों की हत्या की गई थी। इस रात को बूंदी के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। मण्डप के नीचे बिछाई गई बारूद और तलवारों के वार ने मीणा सत्ता को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। इस घटना के बाद, बूंदी पर राजपूतों का अधिकार हो गया, और मीणों की सत्ता इतिहास बन गई।
100000 मीनाओ का कत्लेआम कहा जाए तो मीणा समाज ~ आप~मैं अपने असली इतिहास से अवगत ही नहीं हारना जितना तो दूसरी बात है हमे तो अपनों के बलिदान का ही नहीं पता सल्तनत काल (1206-1526) के दौरान, भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों का शासन था, इन शासकों में से एक प्रमुख नाम गयासुद्दीन बलबन का है। बलबन, जो गुलाम वंश का एक शक्तिशाली सुल्तान था, ने न केवल दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा को मजबूत किया, बल्कि अपने शासनकाल के दौरान कई आदिवासी और हिंदू जातियों का दमन भी किया। इसमें प्रमुखता से मीणा समाज का नाम आता है, जो राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में निवास करती थी। बलबन की शासन नीति को " लहू और लौह " के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ था कि वह अपने शासन को सख्ती से लागू करने और किसी भी प्रकार के विद्रोह को बेरहमी से कुचलने के लिए कड़ा रुख अपनाता था। उसने अपनी सेना को संगठित किया और विद्रोही तत्वों, विशेषकर राजस्थान और मेवात के क्षेत्रों में रहने वाले मीण...
मीनेष ज्ञान–सागर समाज के इतिहास का काला दिन. शुरुवात होती है सन 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम,जिसने भारतीय समाज में विभिन्न जातियों और समुदायों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह विद्रोह भारतीय सैनिकों, किसानों, और अन्य वर्गों द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र संघर्ष था। इस संघर्ष में कई जातियों ने भाग लिया, जिन्होंने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, बल्कि सरकारी सम्पत्तियों को भी भारी नुकसान पहुँचाया। विद्रोह के दौरान, इन जातियों ने अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ खुला विद्रोह किया। ............ विद्रोह की हार के बाद, ब्रिटिश सरकार ने विद्रोहियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्णय लिया। इस प्रक्रिया का एक प्रमुख हिस्सा था जरायम पेशा क़ानून , 12 अक्टूबर 1871 (Criminal Tribes Act, 1871 ) । यह कानून विशेष रूप से उन जातियों के खि...
मरने की अनुमति मीणा समाज पर कठोर नियंत्रण रखने के लिए कई दमनकारी नियम लागू किए थे। विशेषकर 19वीं और 20वीं सदी में, ब्रिटिश शासन ने ऐसे कानून बनाए थे, जिनका उद्देश्य मीणा समाज की हर गतिविधि पर नज़र रखना और उन्हें नियंत्रित करना था। इन नियमों में से कुछ अत्यंत दमनकारी थे, इस कठोर व्यवस्था के तहत, यहाँ तक कि अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए भी लोगों को अनुमति लेनी पड़ती थी। किसी करीबी रिश्तेदार की मौत हो जाने पर भी, व्यक्ति गाँव की सीमा से बाहर नहीं जा सकता था जब तक कि उसे गाँव के मुखिया या थानेदार से लिखित स्वीकृति न मिल जाए। यदि गाँव का मुखिया केवल 12 घंटे की अनुमति देता था और अंतिम संस्कार में अधिक समय की आवश्यकता होती थी, तो व्यक्ति को पुलिस थाने के उच्च अधिकारियों के पास जाना पड़ता था। पुलिस अधीक्षक या महानिरीक्षक से स्वीकृति लेना अक्सर लंबी और जटिल प्रक्रिया थी, और इसमें कई दिनों का समय लग सकता था। इससे कई बार ऐसा हो...
17 नवंबर 1913 मीना समाज का दर्दनाक इतिहास जिन पन्नो को खोला गया तो शायद आपके रोंगटे खड़े हो जाए पर आपको सच्चाई से अवगत न कराया जाए तो ये अपने शूरविरो का अपमान होगा
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