नामकरण ~ जन्मजात अपराधी
1952 में, भारत सरकार ने Criminal Tribes Act को समाप्त कर दिया और
मीणा समुदायों को "अपराधी" की सूची से बाहर कर दिया गया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि इसका प्रभाव तुरंत खत्म हो गया। दशकों तक इन समुदायों को जिस प्रकार का
सामाजिक और
आर्थिक बहिष्कार झेलना पड़ा था, उसकी छाया आज भी इन पर मंडरा रही है।
हालांकि कानून खत्म हो गया, लेकिन समाज में अभी भी कई लोग
मीणा समुदायों को अपराधी के रूप में देखते हैं। यह मानसिकता पीढ़ियों तक चली और आज भी आदिवासी समुदाय इसी
कलंक से जूझ रहे हैं।
इस कानून का प्रभाव न केवल कानूनी स्तर पर बल्कि सामाजिक, आर्थिक, और मानसिक स्तर पर भी बेहद नकारात्मक था।
इस कानून का मुख्य प्रावधान यह था कि मीणा व अन्य कई आदिवासी जनजाति के लोगों को "जन्मजात अपराधी" माना गया कहा जाए तो हमारे बच्चों का नामकरण पुलिस अधिकारियों द्वारा अपराधियों के रूप में किया जाता था, हमे अपराधियों की सूची में दर्ज कर दिया जाता था। यह व्यवस्था इतनी अमानवीय थी कि माता-पिता को अपने नवजात शिशु को अपराधी मानकर उसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज करानी होती थी। आज के परिप्रेक्ष्य में सोचें तो एक माँ का अपने बच्चे के भविष्य के बारे में क्या महसूस करना होगा जब वह जन्म से ही अपराधी ठहरा दिया जाए?
एक आज का समय है जब समाज सोचता है मेरे बच्चे पे कोई मुकदमा ना लग जाए नही तो उसका भविष्य बनने में दिक्कत आएगी उसे नौकरी मिलने में परेशानियां उठानी पड़ेगी किसी तरह अपने बच्चे को थाना तहसील से उसे बचाने की दूर रखने की कोशिश करता है की उसका बच्चा इस चक्कर में न फस जाए और उसी जगह सोचिए एक माँ की पीड़ा जो अपने नवजात बच्चे को गोद में लिए हुए थाने की ओर जा रही हो, ताकि उसका नाम अपराधियों की सूची में दर्ज किया जा सके। वह बच्चा जो अभी-अभी इस दुनिया में आया है, अपनी मासूमियत के साथ माँ की गोद में लेटा हुआ है, और बिना किसी अपराध के उसे जन्मजात अपराधी बना दिया जाएगा। उस माँ के दिल में कितनी तकलीफ होगी कि उसका बच्चा, जिसे उसने नौ महीने अपनी कोख में रखा, अब समाज की नजर में एक अपराधी हो गया है।
सोचिए एक माँ-बाप के दिल में कितनी चिंता होगी कि उनका बच्चा जब बड़ा होगा, तो उसे समाज में क्या स्थान मिलेगा? क्या उसे नौकरी मिलेगी? क्या उसे शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिलेगा? इन सवालों के जवाब में हमेशा एक ही शब्द आता था – "नहीं"।
यह कानून पूरी तरह से
मीणा समुदाय के खिलाफ अन्यायपूर्ण व्यवहार का प्रतीक था। इसने बच्चों के भविष्य पर हमेशा के लिए एक
काला धब्बा लगा दिया, जिससे वे न केवल शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित हुए, बल्कि समाज के मुख्यधारा में शामिल होने का भी अधिकार खो बैठे।
जिन सभी जनजातियों और समुदायों को इस कानून के तहत "अपराधी" घोषित किया गया था, हमे समाज के अन्य वर्गों से पूरी तरह अलग-थलग कर दिए गए। हमे हर समय पुलिस की निगरानी में रहना पड़ता था, जिससे हम सामान्य जीवन नहीं जी सकते थे।
समाज ने
मीणा समुदायों के लोगों को हमेशा अपराधी की नजर से देखा। चाहे अपने लोग कितने भी ईमानदार और मेहनती क्यों न हों, उनके ऊपर हमेशा एक शक का साया मंडराता रहता था। इसका नतीजा यह हुआ कि इन समुदायों के लोग न केवल कानूनी रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी बुरी तरह से पीड़ित हुए। समाज के अन्य वर्गों से हमेशा दूरी बनाए रखने के लिए मजबूर किया गया।
हमारे पास ना शिक्षा के साधन थे, और रोजगार के अवसरों से भी वंचित कर दिए गए। किसी भी उद्योग या व्यवसाय में मीणा समाज को काम देने से कतराया जाने लगा, क्योंकि हम पर "अपराधी" का ठप्पा लगा हुआ था।
हमे पहचान बनाने का मौका नहीं दिया गया। हमारी पढ़ाई, शिक्षा, और रोजगार के सारे रास्ते बंद कर दिए गए थे। नतीजतन, इन मीणा समाज। के लोग गरीबी में जकड़ गए और हमारा जीवन संघर्षमय हो गया रोजगार नहीं मिलता, तो आर्थिक स्तर गिर जाता है। हमेशा हीन भावना से देखा जाता था हमे मौका भी नहीं दिया।
हमे कभी भी समाज में उचित स्थान नहीं मिला, और न ही हमें समान अधिकार दिए गए। चाहे वह शिक्षा हो, रोजगार हो, या सामाजिक स्वीकार्यता – मीणा समाज को हर जगह भेदभाव का सामना करना पड़ा।
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