प्रशासन में एक समय था जब नगरों और ग्रामों की सुरक्षा का प्रमुख उत्तरदायित्व
मीणा जाति के चौकीदारों को सौंपा गया था। इन चौकीदारों ने अपनी जिम्मेदारी निष्ठा और सजगता से निभाई, अपनी जाति और समाज के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच बने। समाज को लगा उन पर भरोसा कर के ये काम उनको दिया है लेकिन इसके पीछे साजिश कुछ और थी और उलट-पुलट स्थिति ने इसे एक सजा में बदल दिया। शासन वर्ग को पता था ताकत से अपने लोगो को नही दबाया जा सकता तो उन्होंने एक नया हथकंडा अपनाया और समाज इस जाल में फस गया और इस मौके का फायदा पाके शासन वर्ग ने
अत्यंत अन्यायपूर्ण प्रतिबंध "दादरसी कानून" लागू किया जिसने हमारे पैर में बेड़ियां बांध दी हमें शक के कटघरे में ला खड़ा किया और समाज इस बात से चुप था की उनके होते हुए चोरी केसे हो गई और उनके द्वारा बिछाए जाल में पूरी तरह फसता चला गया
इस कानून के तहत, अगर चोरी की गई संपत्ति का कोई सुराग नहीं मिलता था, तो संबंधित चौकीदार से चोरी की कीमत अदालत द्वारा वसूल की जाती थी कहा जाए तो अपराधी को छूट पुलिस को जेल अब सोचिए, एक चौकीदार जिसे चोरी से कोई संबंध नहीं था, वह अपनी सजगता और ईमानदारी के बावजूद चोरी होने पर कैसे उस नुकसान की भरपाई कर सकता था?
आज की तारीख में, जब सुरक्षा के लिए पुलिस विभाग मौजूद है, तब भी चोरी होती है, क्या
पुलिस अधिकारी से चोरी की क्षतिपूर्ति ली जाती है? नहीं। ऐसे में, यह साफ है कि यह कानून
सिर्फ मीणा जाति की स्वतंत्रता और सम्मान को दबाने का एक माध्यम था। शासक वर्ग की योजना थी कि इस जाति के आत्मसम्मान को कुचला जाए, उनकी संपत्तियों को छीन लिया जाए, और उन्हें
अपराधी जाति के रूप में प्रस्तुत किया जाए।
इस दकियानूसी व्यवस्था से न केवल कई घर उजड़ गए, बल्कि
मीणा जाति के
खिलाफ एक साजिश रची गई, जिससे उन्हें समाज में अपराधी जाति के रूप में पहचान मिली। यह पूरी प्रक्रिया एक जातिवादी सोच का हिस्सा थी, जिसने उन्हें न केवल
शारीरिक रूप से प्रभावित किया, बल्कि
मानसिक रूप से भी कमजोर किया।
शासक वर्ग की यह योजना थी कि मीणा जाति की स्वतंत्रता को दबाया जाए और उन्हें अपराधी साबित किया जाए। इस
अन्यायपूर्ण व्यवस्था के कारण कितने ही परिवारों का जीवन तबाह हुआ, उनके घर उजड़े, और उनकी संपत्ति को जब्त कर लिया गया। यही नहीं, समस्त
मीणा जाति को ही एक
अपराधी जाति के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया।
यह सचमुच एक गहरी छाया थी, जो उस समय की व्यवस्था ने
मीणा जाति के जीवन पर डाली थी, और इसका असर आज भी महसूस किया जा सकता है।
शासक वर्ग की नीति थी कि
मीणा जाति की स्वतंत्रता को दबाया जाए।
दादरसी कानून और अन्य सख्त नियमों के जरिए उन्हें
अपराधी साबित किया गया और समाज में उनके खिलाफ एक नकारात्मक छवि बनाई गई।
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