मीणा इतिहास

बावन कोट छप्पन दरवाजा – मीणा मर्द नहाण का राजा।"

          बावन कोट छप्पन दरवाजा, मीणा मर्द                         नहाण का राजा। "

आगरा की मीणा मस्जिद – अकबर से युद्ध

    आगरा की मीना मस्जिद–अकबर से युद्ध




     नरेठ और झिरी राज्य मीणा जाति के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक हैं। इन महलों और किलों के अवशेष आज भी मौजूद हैं, जो उस समय की समृद्धि और शक्ति का परिचय देते हैं। दोनों नगरों के चारों ओर मजबूत परकोटा था, जो इन्हें बाहरी आक्रमण से सुरक्षित रखने में सक्षम था। इन महलों में रहने वाले मीणा शासक और उनकी प्रजा दोनों ही समृद्ध और स्वाभिमानी थे।
             कहा जाता है कि इन राज्यों की समृद्धि इतनी अधिक थी कि उनके महलों की सजावट में सोने और बहुमूल्य धातुओं का प्रयोग होता था। अकबर की सेना भी इनके मुकाबले में टिक नहीं पाई और यह राज्य सैकड़ों सालों तक स्वतंत्र रहे।ये राज्य मुगलकालीन भारत में अपनी स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए जाने जाते थे। नरेठ और झिरी न केवल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थे, बल्कि इन राज्यों की सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि ने इन्हें शक्तिशाली जनपदों के रूप में स्थापित किया था
नरेठ और झिरी नगर वर्तमान राजस्थान के थानागाजी तहसील में स्थित है और ये राज्य स्वतंत्र रूप से शासन करते थे। नरेठ के शासक राव बाधाराय इरिया थे, जबकि झिरी पर राव झिरिया का शासन था। इन शासकों ने अपनी सैन्य और राजनीतिक ताकत से इन राज्यों को सैकड़ों सालों तक सुरक्षित रखा। राव बाधाराय और राव झिरिया का शासन एक स्वतंत्र स्वराज्य के रूप में स्थापित था, जो किसी भी बाहरी आक्रमण को सहन नहीं करता था।
                जब मुगल सम्राट अकबर ने सम्पूर्ण राजपूताना पर अपना अधिकार जमाने की योजना बनाई, तो कई स्थानीय शासकों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। आमेर के कच्छावा शासक अकबर के पक्ष में आ गए थे, लेकिन नरेठ के राव बाधाराय और झिरी के राव झिरिया ने मुगलों के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया। इन दोनों राज्यों ने महाराणा प्रताप के नेतृत्व में अकबर के खिलाफ अपनी ताकत झोंक दी।
             अकबर ने नरेठ और झिरी के शासकों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रलोभन दिए, ऊंचे पद और सम्मान की पेशकश की, लेकिन इन शासकों ने इसे ठुकरा दिया। इन शासकों ने स्वतंत्रता और स्वाभिमान को किसी भी प्रलोभन से अधिक मूल्यवान समझा। राव बाधाराय और राव झिरिया ने मुगल सेना के खिलाफ अपनी सेनाओं का नेतृत्व किया अकबर ने नरेठ और झिरी पर कब्जा करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन राव बाधाराय और राव झिरिया ने हार नहीं मानी। अंततः मुगलों ने भारमल कच्छावा को अपनी ओर मिलाकर इन राज्यों पर आक्रमण किया। इस संघर्ष में मीणा सरदारों और उनके वीर सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। इनकी पत्नियों और महिलाओं ने भी युद्ध में भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुईं
      अकबर की मुगल सेना ने भारमल कछावा के साथ मिलकर नरेठ और झिरी के राजमहलों पर हमला किया और उन्हें बुरी तरह से नष्ट कर दिया। इन महलों के मूल्यवान पत्थर आगरा ले जाए गए, जहां से 'मोना मस्जिद' का निर्माण किया गया। भारमल ने लूट के माल का उपयोग नाहरगढ़ किले के जीर्णोद्धार और विस्तार के लिए किया।

राव झिरिया का किले के चारों ओर सुदृढ़ परकोटा खंडहरों में तब्दील हो चुका था, लेकिन इसकी विशालता आज भी स्पष्ट थी। यह किला चार किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। पहाड़ पर स्थित राव झिरिया के महल, हाथियों और घोड़ों के बांधने के स्थान के अवशेष विध्वंस की स्थिति में थे, लेकिन आज भी उनकी भव्यता झलकती है। पहाड़ पर कुलदेवी का एक मंदिर भी स्थित है, । दशहरे के समय इस मंदिर में देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है, जिससे इस ऐतिहासिक स्थल का धार्मिक महत्व भी स्पष्ट होता है।
           
           इस क्षेत्र में लगभग 500 गांवों में मीणा समुदाय की बस्तियाँ हैं। इनमें जयपुर के आसपास और अन्य स्थानों जैसे हीदा की मोरी, सांगानेरी गेट, धूलेश्वर गार्डन, बूज, उदयपुरवाटी, नांगल, अमरसर, मुंडरू, आदि गाँव प्रमुख हैं।

नोट कुछ अन्य बिंदु 👉 मीनेष ज्ञान–सागर

टिप्पणियाँ

Trending News

एक लाख मीनाओ का कत्लेआम इतिहास से अनजान

12 अक्टूबर समाज का काला दिन जिसका दर्द अभी तक ......

मरने की अनुमति

खून से लाल हुई धरती. मीनाओ की बर्बर हत्या / राजस्थान का जलियांवालाकांड