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सर्व समाज में जहा आज अमावस के दिन अंतिम श्राद बनाया जा रहा है वही मीणा और गुर्जर समाज में दिवाली पर्व पर जहां लक्ष्मी-पूजन का विशेष महत्व है. तब पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण किए जाने की पुरानी परंपरा का निर्वहन कई साल से किया जा रहा है. पितृ अर्पण की ऐतिहासिक परंपरा दीपोत्सव के पर्व पर होती आ रही है. समाज के वरिष्ठजनों के मुताबिक, पितृ अर्पण मीणा समाज में गोवर्धन के दिन क्षेत्रीय मान्यता के मुताबिक किए जाते हैं. समाज के लोग सामूहिक रूप से इकट्ठे होकर पारिवारिक मुखियाओं द्वारा नदी, तालाब, कुंआ, बावड़ियों पर जल अर्पण दूब के पौधे के पत्तों द्वारा दक्षिण दिशा में अपने पूर्वजों, वंशजों, पुरखों को नमन करते हुए उन्हें याद कर करते हैं. 
अलग-अलग जगहों पर कई सालों से इस परंपरा का निर्वहन परिवार के सभी सदस्य करते आ रहे हैं. इसके साथ ही युवा पीढ़ी को इस खास परंपरा से रूबरू भी करवा रहे हैं. आदिवासी मीणा समाज में कुलदेवताओं के रूप में भौमिया, भेरुजी आदि को भी भोग लगाया जाता है, जो की पूर्वजों, पुरखों के रूप में पूजे जाते हैं. समाज की पितृ अर्पण की परंपरा श्राद्ध पक्ष के विपरीत बिना किसी पूजा-पाठ के शुक्ल पक्ष में की जाती है.
हजारों सालों से परम्परा यह चली आ रही है.
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