मीणा इतिहास

बावन कोट छप्पन दरवाजा – मीणा मर्द नहाण का राजा।"

          बावन कोट छप्पन दरवाजा, मीणा मर्द                         नहाण का राजा। "

12 अक्टूबर समाज का काला दिन जिसका दर्द अभी तक ......

                       मीनेष ज्ञान–सागर
             समाज के इतिहास का काला दिन.

शुरुवात होती है सन 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम,जिसने भारतीय समाज में विभिन्न जातियों और समुदायों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह विद्रोह भारतीय सैनिकों, किसानों, और अन्य वर्गों द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र संघर्ष था। इस संघर्ष में कई जातियों ने भाग लिया, जिन्होंने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, बल्कि सरकारी सम्पत्तियों को भी भारी नुकसान पहुँचाया। विद्रोह के दौरान, इन जातियों ने अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ खुला विद्रोह किया।
............
       
    विद्रोह की हार के बाद, ब्रिटिश सरकार ने विद्रोहियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्णय लिया। इस प्रक्रिया का एक प्रमुख हिस्सा था जरायम पेशा क़ानून,12 अक्टूबर 1871 (Criminal Tribes Act, 1871)। यह कानून विशेष रूप से उन जातियों के खिलाफ था, जिन्हें विद्रोह में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण "जरायम पेशा" के रूप में वर्गीकृत किया गया था। यह एक अत्यंत भेदभावपूर्ण और दमनकारी कानून था, जिसने हजारों जनजातियों के जीवन को प्रभावित किया।

जरायम पेशा क़ानून के तहत, 12 वर्ष से ऊपर के सभी पुरुषों को पुलिस थाने में प्रतिदिन हाज़िरी देना अनिवार्य था। यह निगरानी इस उद्देश्य से की गई थी कि इन जातियों के सदस्यों की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जा सके। इसके अलावा, एक ज़िले से दूसरे ज़िले में जाने के लिए प्रशासन से अनुमति लेना आवश्यक था। यह प्रावधान उनके नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करता था और उन्हें बिना किसी अपराध के अपराधी प्रमाणित करता था। नवजात के जन्म की सूचना प्रशासन को तुरंत देनी होती थी, और नवजात को भी जन्मजात "जरायम पेशा" जनजाति के तहत रजिस्टर किया जाता था, जो कि समाज में स्थायी कलंक के रूप में कार्य करता था। इन जैसे कानूनों की वजह से अभी तक हमे चोर अपराधी की नजरो से देखा जाता है ।

देश आज़ाद होने के बाद, 31 अगस्त 1952 को यह काला कानून समाप्त कर दिया गया। इसके बाद, इस कानून के तहत वर्गीकृत जातियों को विमुक्ति जातियाँ (Denotified Tribes) का दर्जा दिया गया। हालांकि, यह नाम बदलने के बावजूद, इन जातियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।
आज भी समाज उस ही नजर से देखता है तू तो चोर है
अभी भी जातीय  अक्सर सामाजिक भेदभाव, आर्थिक असमानता, और शिक्षा के अभाव का सामना करती हैं।  समाज को उत्थान के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि इन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके।

Note: Some more important article 

टिप्पणियाँ

Trending News

एक लाख मीनाओ का कत्लेआम इतिहास से अनजान

मरने की अनुमति

खून से लाल हुई धरती. मीनाओ की बर्बर हत्या / राजस्थान का जलियांवालाकांड